दारू- दहेज

भोजपुरी बिरहा: दारू और दहेज: डाकू परसुराम की कहानी: पूर्वाञ्चल में बिरहा पिछले 200 सालों से प्रचलित लोकगीत रहा है. इन गीतों के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराईयों पर हमेशा चोट किया गया. दारू और दहेज में मेरठ के एक गरीब परिवार की कहानी है. बिरजू नाम के किसान के घर में मदन मोहन दो बेटे और बेटी मंजू नाम की बेटी है. पत्नी का नाम पार्वती है. एक दिन उनके खलिहान में आग लग जाती है और आग में जल के बिरजू की मौत हो जाती है. बच्चे अनाथ हो जाते है. बिरजु के भाई मदन-मोहन को दारू बेच कर गुजारा करने को कहते है. मदन मोहन दोनो पढ़ाई के लिए स्टेशन पर भीख मांगने जाते है. मदन ट्रेन में भीख मांगने लगता है और ट्रेन चल देती है. मोहन ट्रेन का पीछा करता है और पत्थर से टकराकर गिर जाता है और याद्दाश्त खो देता है. मदन भी ट्रेन से उतरने की कोशिश करता है और एक व्यक्ति से अपनी कहानी बता कर ट्रेन रुकवाने का निवेदन करता है, वो व्यक्ति पेशे से डाक्टर होता है और उस बच्चे को घर ले जाता है. डाक्टर बेऔलाद हैं और बच्चे को पालने का निर्णय लेते है. उधर मोहन को एक डाकू अपने घर ले जाता है. कहानी आगे बढती है और मदन मोहन की मां मंजू को मजदूरी करके बड़ा करती है. मंजू एक लड़के राकेश से प्यार करती है लेकिन राकेश के पिता दहेज में 40 हजार मांगते है और शादी नहीं हो पाती है. गांव के सरपंच मंजू को अपने यहाँ काम करने के लिए रख लेते है लेकिन उनकी गंदी नीयत जानकर मंजू उन्हे मार पीट के घर आ जाती है. सरपंच के डर से मंजू और उसकी मां गांव छोड़ देते है. मंजू अपने मां के घर ख्वाजा गरीब नवाज के दर पे जाती है और अपने बिछड़े हूए भाईयों से मिलने की दुआ मांगती है. रास्ते में जाते हूए उनके पास एक डाकू आता हैं ज़िसे गोली लगी है. डाकू पानी मांगता है, मंजू उसे पानी पिलाती है और रोने लगती है. डाकू इलाके का मशहूर परशुराम डाकू है और वो मंजू से उसके रोने का कारण पुछता है. मंजू अपने भाईयों के बिछड़ने की बात बताती है और कहती है की उनके भाई ज़हा भी होंगे वो भी परशुराम के जितने बड़े हूए होंगे. वो उसे अपने शादी टूटने की बात भी बताती है. परशुराम उन्हे पैसे देकर विदा करता है और शादी का पूरा खर्च उठाने का वादा करता है. परशुराम उनसे ये बात किसी को भी न बताने को कहता है. मंजू की मां और मंजू वापस आ जाते है. शादी की तैयारियां शुरू होती है तो राकेश के पिता को ये शक होता है की इतने पैसे आ कहाँ से रहे है. मंजू की मां किसी को कुछ नही बताती है लेकिन मंजू राकेश की बहन को असलियत बता देती है. बात धीरे धीरे पुलिस तक पहुँच जाती है. परशुराम शादी में भेष बदल कर पहुचता है और मंजू का कन्यादान करता है. वापस लौटते वक्त पुलिस मूठभेड़ में उसे गोली लग जाती है और पुलिस डाकू परशुराम को अस्पताल ले जाती है. बेहोश डाकू परशुराम होश में आने पर अपने भाई मदन को जोर जोर से आवाज देता है. तब मंजू को पता चलता है की डाकू परशुराम उसका खोया हुआ भाई मोहन है. मोहन की आवाज सून कर अस्पताल के मालिक डाक्टर वहां पहुचते है और उन्हे पता चलता है की मरीज परशुराम उनका भाई मोहन है. बहन मंजू और भाई मदन-मोहन फूट फूट के रोने लगते है. मंजू की मां भी वहां पहुँचती है. डाक्टर मदन मोहन को बचाने की कोशिश करते हैं लेकिन छह गोलिया लगने के वजह से मोहन की मौत हो जाती है. डाकू कानून की नजर में जो भी हो मगर पूर्वाञ्चल के लोक गीतों में उन्हे ज्यादातर गरीबो का मसीहा बताया गया है. शायद इसीलिए पान सिंह तोमर फिल्म में ईरफान खान ने कहा है, "बीहड़ में बागी होते है, डकैत मिलते है पार्लियामेंट में" जय हिन्द. 

(यह बिरहा गाने व्यक्ति का नाम हैदर अली जुगनु है जो अब इस दुनिया में नही रहे. ये कहानी मदन, मोहन, मंजू और उसकी मां की नहीं वरन दारू और दहेज की बुराई का है. ज्यादातर बिरहा सच्ची घटनाओं का लोकगीत रूपान्तरण होते है मगर इस घटना के शत-प्रतिशत सत्य होने का दावा मैं नही करता. ये बिरहा युट्यूब पर मौजूद है.)

https://youtu.be/C-89TY-PSfo & https://youtu.be/13rUjvfQSFU

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